परदेशी उत्थान संस्था की नीव श्री शंकर शर्मा द्वारा राखी गयी थी। परदेशी उत्थान संस्था का मूल उद्देश्य है – क्रांति के द्वारा सामाजिक समरसता, कौशल विकास के द्वारा सामाजिक उत्थान और आध्यात्मिक चिंतन द्वारा “एको ब्रह्म द्वितीयों नास्ति को चरितार्थ” करते हुए ईश्वर और धर्म को मूल स्वरूप में लाना। संस्था इन्हीं सिद्धांतों पर “सबल भारतीय आत्मनिर्भर भारत” का निर्माण करेगी और कराएगी। हमारी संस्था स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रकृति, पर्यावरण, खेल और आजीविका के क्षेत्र में कार्य करती है। इन सब कार्यो के द्वारा हम समाज में एक नया बदलाव लाना चाहते हैं।
उद्देश्य :- सामाजिक समरसता , सामाजिक उत्थान व ईश्वर और धर्म को मूल स्वरुप में लाना ।
परदेशी उत्थान एन.जी.ओ. विचार क्रांति के द्वारा सामाजिक समरसता। कौशल विकास के द्वारा सामाजिक उत्थान और आध्यात्मिक चिंतन द्वारा एको ब्रह्म द्वितीयों नास्ति को चरितार्थ करते हुए ईश्वर और धर्म को मूल स्वरूप में लाना। परदेशी उत्थान एन.जी.ओ. का मूल उद्देश्य है। एन.जी.ओ. इन्हीं सिद्धांतों पर सबल भारतीय आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करेगी और कराएगी।
हर साल जाते हैं एक देश से दूसरे देश।
मौसम के अनुसार हो जाते हैं परदेशी।।
परदेशी होना प्राकृतिक
परदेशी निर्विरोध होता है इसमें किसी प्रकार का विरोध नहीं होता है। परदेशी दुनिया में कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र होता है। परदेशी ही एक ऐसा शब्द है कभी न कभी हर कोई अपने जीवन में प्रवास पर होता है और परदेशी कहलाता है। यदि हम सनातन धर्म के उपनिषद व वेद की वाणी ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को सही मायने में चरितार्थ करने का काम करता है। तो वो है परदेशी। परदेशी, एक से दूसरे स्थान पर जाकर अपने व दूसरों की संस्कृति का आदान-प्रदान हो या एक दूसरों के बीच आत्मीक रिश्ता जोड़ना, भाईचारा कायम करना व सामाजिक समरसता पैदा करना इत्यादि परदेशियों की प्राथमिकता रहती है। इस वसुधा को अपने देश व इस पर रहने वाले मनुष्य को अपना रिश्तेदार समझकर पूरी दुनिया का विचरण करने वाला परदेशी निश्छल व निर्विरोध होता है तथा अपना व दुनियां के विकास में ही विश्वास रखता है। इसलिए दुनियां भर में कहीं भी किसी भी प्रकार की परदेशियों की प्रतारणा का हम विरोध करते है। चाहे वो रंग भेद हो, भाषा भेद हो, धर्म भेद हो, नस्ल भेद, प्रांत भेद, जाति भेद हो इत्यादि।
“परदेशी सर्वश्रेष्ठ”